रस रस का शाब्दिक अर्थ होता है – आनन्द। काव्य को पढ़ते या सुनते समय जो आनन्द मिलता है उसे रस कहते हैं। रस को काव्य की आत्मा माना जाता है। रसों के आधार भाव हैं। भाव मन के विकारों को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- 1. स्थायी भाव। 2. संचारी भाव। 1. स्थाई भाव - रस रूप में पुष्ट होने वाला तथा सम्पूर्ण प्रसंग में व्याप्त रहने वाला भाव स्थाई भाव कहलाता है। स्थाई भाव 9 माने गए हैं किंतु वात्सल्य नाम का दसवां स्थाई भाव भी स्वीकार किया जाता है। भरत मुन...
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